مہاتما منوہر داس جی
دوہا 8
जीवेश्वर चैतन्य महि, कहिये है द्वै नाम।।
सर्वज्ञता अल्पज्ञ पुनि, संसारी सुखधाम।।
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जीवेश्वर द्वै जगत मंहि, प्रगट कहैं सब कोई।।
वाह्य दिष्टि विवेक बिन, अन्तर्दिष्टि न होई।।
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तप्त नीर चूर्ण भषै, उदर रोग सब जाइ।।
त्यौं साधन सहित विचारतैं, संसार रोग नसाइ।।
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भाषा ग्रन्थ यह वचनिका, औषध चूर्ण सोइ।।
ज्ञानचूर्ण यह वचनिका, नामजु या को होइ।।
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संसै रोग संसार सब, नासै करै विचार।।
कहै मनोहर निरंजनी, यह निहचै निरधार।।
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