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शे'र
निकल कर ज़ुल्फ़ से पहुँचूँगा क्यूँकर मुसहफ़-ए-रुख़ परअकेला हूँ अँधेरी रात है और दूर मंज़िल है
अकबर वारसी मेरठी
सूफ़ी साहित्य
दूसरा बाब - मा'रिफ़त-ए-तासीर-ए-आ’लम और चौथा बाब:- रियाज़त और उस की कैफ़ियत
दूसरा बाबमा'रिफ़त-ए-तासीर-ए-आ’लम
ग़ौस ग्वालियरी
ग़ज़ल
छुड़ा देती है फ़िक्र-ए-ग़ैर से तासीर-ए-मय-ख़ानामिली है अ’र्श की ज़ंजीर से ज़ंजीर-ए-मय-ख़ाना
मौलाना अ’ब्दुल क़दीर हसरत
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बैत
तासीर न हो क़ौल में किस तरह से मेरे
तासीर न हो क़ौल में किस तरह से मेरेतुम जिस को असर कहते हो मैं उस का बयाँ हूँ
ख़्वाजा रुक्नुद्दीन इश्क़
कलाम
छुड़ा देती है फ़िक्र-ए-ग़ैर से तासीर-ए-मय-ख़ानामिली है 'अर्श की ज़ंजीर से ज़ंजीर-ए-मय-ख़ाना
मौलाना अ’ब्दुल क़दीर हसरत
ग़ज़ल
शहीद-ए-इ’श्क़-ए-मौला-ए-क़तील-ए-हुब्ब-ए-रहमानेजनाब-ए-ख़्वाजः क़ुतुबुद्दीं इमाम-ए-दीन-ओ-ईमाने
वाहिद बख़्श स्याल
सूफ़ी कहावत
रू-ए ज़ेबा मरहम-ए-दिलहा-ए-ख़स्ता अस्त-ओ-कलीद-ए-दरहा-ए-बस्ता
एक ख़ूबसूरत चेहरा दुखी दिलों के लिए मरहम की तरह होता है, और बंद दरवाजों के लिए कुंजी
वाचिक परंपरा
ना'त-ओ-मनक़बत
गुल-ए-बुस्तान-ए-मा'शूक़ी मह-ए-ताबान-ए-महबूबीनिज़ामुद्दीन सुल्तान-उल-मशाइख़ जान-ए-महबूबी