आपकी खोज से संबंधित
परिणाम "राजे"
अत्यधिक संबंधित परिणाम "राजे"
अन्य परिणाम "राजे"
काफी
रहु रहु उए इश्का मारिआ ई
रहु रहु उए इश्का मारिआ ई ।मुग़लां ज़हर प्याले पीते, भूरियां वाले राजे कीते,
बुल्ले शाह
शबद
उठ जाग घुराड़े मार नहीं, एह सौण तेरे दरकार नहीं ।
ओथे होसी होर न बेली, साथ किसे दा बार नहीं ।जेहड़े सन देसां दे राजे, नाल जिन्हां दे वजदे वाजे ।
बुल्ले शाह
ना'त-ओ-मनक़बत
राजे हूँ या ठाकुर आ'शिक़ हैं सब उन केनाम पे उन के नाज़ाँ पूरा राजस्थान
दरदाना ख़ान अबुल उलाइ
काफी
उट्ठ जाग घुराड़े मार नहीं
जेहड़े सन देसां दे राजे नाल जिन्हां दे वज्जदे वाजेगए रो रो बेतखते ताजे कोई दुनियाँ दा ए'तिबार नहीं
बुल्ले शाह
फ़ारसी सूफ़ी काव्य
राज़े ज़े-अज़ल अंदर दिल-ए-उश्शाक़ निहान-अस्तज़ाँ राज़ ख़बर याफ़्त कसे रा कि अ'यान-अस्त
हकीम सनाई
सूफ़ी लेख
कबीर जी का समय डाक्टर रामप्रसाद त्रिपाठी, एम. ए., डी. एस्-सी.
चौदहवीं शताब्दी के मध्यकाल में कबीर का जन्म मानने से वे पीपा जी के समकालीन हो