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सूफ़ी लेख
शाह तुराब अली क़लंदर और उनका काव्य
सन्मुख तोरे मैं आपै न हूँगीजारो न फूँको जियरवा मोरा
सुमन मिश्रा
राग आधारित पद
राग टोड़ी -जब मेरो यार मिलै दिल जानी । होइ लबलीन करौं मेहमानी ।।
धरनी इत उत फिरहि न भोरे । सन्मुख रहहि दोऊ कर जोरे ।।
धरनीदास जी
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दकनी सूफ़ी काव्य
मसनवी गुलशने इश्क़
किया ज्यों जो सन्मुख हो जगचार अमीरन ले कुच बी जब फिर चल्या वह फ़कीर
नुसरती
ग़ज़ल
तिरी शमशीर-ए-अबरू सीं हुए सन्मुख व इल्ला नअजल की तेग़ सीं ज्यूँ आरा दंदाने हुए होते
सिराज औरंगाबादी
सूफ़ी लेख
अबुलफजल का वध- श्री चंद्रबली पांडे
मारै जाहि खड द्वै होय, ताके सन्मुख रहै न कोय। गाजत गजही सत हय खरे, बिन सुडनि बिन पायनि करे।
नागरी प्रचारिणी पत्रिका
दोहा
सतगुरू - सतगुरू शब्दी तेग़ है लागत दो करि देही
सतगुरू शब्दी तेग़ है लागत दो करि देहीपीठ फेरि कायर भजै सूरा सन्मुख लेहि
चरनदास जी
दोहा
रहिमन घरिया रहँट की त्यो ओछे की डीठ
रहिमन घरिया रहँट की त्यो ओछे की डीठरीतिहि सन्मुख होत है भरी दिखावै पीठ
रहीम
कुंडलिया
प्रेम बान जा के लगा सो जानैगा पीर
सतसंगति से बिमुख और के सन्मुख धावैजिन कर हिया कठोर है 'पलटू' धसै न तीर
पलटू साहेब
शबद
प्रेम का अंग - हरि संग लागत बुंद सोहवन
मंडौ प्रेम मगन भई कामिनि उमँगि उमँगि रति भावनकह 'गुलाल' सन्मुख साहब मिल्यो, घर मारे है रावन