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दोहा
विनय मलिका - तीन लोक में हे प्रभू तुम हीं करो सो होय
तीन लोक में हे प्रभू तुम हीं करो सो होयसुर नर मुनि गंधर्ब जे मेटि सकैं नहिं कोय
दया बाई
दोहा
विनय मलिका - हाथी बूड़ो सूंड लों जब हीं करी पुकार
हाथी बूड़ो सूंड लों जब हीं करी पुकारग्राहतें आन छुड़ाइया लगी न रंचक बार
दया बाई
ग़ज़ल
क्यूँकर 'नियाज़' माने औरों की ख़ुश-कलामीउस को तो प्यारी बातें प्यारे की भा रही हीं
शाह नियाज़ अहमद बरेलवी
अष्टपदी
अनहद शब्द अपार दूर सूँ दूर है
याके कीने ध्यान होत है ब्रह्म हींधारै तेज अपार जाहि सब भर्म हीं
चरनदास जी
दोहा
विनय मलिका - किस बिधि रीझत हौ प्रभू का कहि टेरूँ नाथ
किस बिधि रीझत हौ प्रभू का कहि टेरूँ नाथलहर मेहर जब हीं करो तब हीं होउँ सनाथ
दया बाई
अष्टपदी
ज्ञान मति वर्णन - तन मथने को जतन कहूँ अब जानिये
रोकै प्रानहिं बायु त्रिकुटी मध्यहींकरै ओं का ध्यान सीस में गध हीं