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फ़ारसी सूफ़ी काव्य
मुर्दः बुदम ज़िंद: शुदम गिर्यः बुदम ख़ंदः शुदमदौलत-ए-'इश्क़ आमद-ओ-मन दौलत-ए-पायंदः शुदम
रूमी
ना'त-ओ-मनक़बत
वक़्फ़ थे क़ुदसी-ए-अज़ल से जिन की ता’अत के लिएआए वो दुनिया में दुनिया की हिदायत के लिए
शकील बदायूँनी
ना'त-ओ-मनक़बत
जिन को भी मा’लूम है शान-ए-वक़ार-ए-फ़ातिमाअपने सर करते हैं फ़र्श-ए-रह-गुज़ार-ए-फ़ातिमा
मुहम्मद इरफ़ान
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फ़ारसी सूफ़ी काव्य
ऐ ग़म्ज़: ज़न कि तीर-ए-जफ़ा दर कमान-ए-तुस्तआहिस्तः ज़न कि गर्दन-ए-मा दर इ’नान-ए-तुस्त
अमीर ख़ुसरौ
फ़ारसी सूफ़ी काव्य
मतला-ए’-ख़ुर्शीद-ए-ईमानस्त ज़ाँ सीमा-ए-मननूर-ए-पेशानीस्त ख़ाक-ए-कूचः-ए-देवा-ए-मन
लताफ़त वारसी
राग आधारित पद
राग मलार- ऐसे जन धनि जननी जिहि जाये
ऐसे जन धनि जननी जिहि जायेदूसर कुल में भक्ति नहीं थी
सहजो बाई
कलाम
आशिक़ पढ़न नमाज़ पिरम दी जैं विच हरफ़ न कोई हूजेहा केहा नीत न सक्के उथ दर्दमंद दिल ढोई हू
सुल्तान बाहू
फ़ारसी सूफ़ी काव्य
ऐ ज़ाहिदाँ ऐ ज़ाहिदाँ ता चंद ज़ीं तदबीर-हाऐ ग़ाफ़िलाँ ऐ ग़ाफ़िलाँ ता चंद ज़ीं हिर्स-ओ-हवा
रूमी
पद
गुन अजब नामः - सु पीय की प्रकीति जिन पाई
सु पीय की प्रकीति जिन पाई रहसि सुखि एक रंग माईलालच लोभ भ्रम भारी त्रिबिधि पुन ताप तिनि जारी
वाजिद जी दादूपंथी
शे'र
क्या ग़म जो टूट जाएँ जिगर, जाँ, कलेजा, दिलपर तेरी चाह की न तमन्ना शिकस्त हो
सुलेमान शिकोह गार्डनर
साखी
अथ जतन का अंग - जन 'रज्जब' राखे बिना नाम न राख्या जाय
अथ जतन का अंग - जन 'रज्जब' राखे बिना नाम न राख्या जायजैसे दीपक जतन बिन विसवाबीस बुझाय
रज्जब
पद
ककहरा - जज्जा जिन जिन सुरति सँवार काल डर ना रही
जज्जा जिन जिन सुरति सँवार काल डर ना रहीचढ़ी गगन पर धाय पाय पति पै गई