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कलाम
वही कुछ हुस्न के जल्वों का पूरा लुत्फ़ पाते हैंजो अपने दिल को ख़ुद इक मुस्तक़िल का'बा बनाते हैं
कामिल शत्तारी
ग़ज़ल
अमीर मीनाई
शे'र
अमीर मीनाई
ग़ज़ल
मंज़िल-ए-इश्क़ में हस्ती का पत: कुछ भी नहींजल्वे ही जल्वे हैं जल्वों के सिवा कुछ भी नहीं
रशीद वारसी
ग़ज़ल
पाता नहीं बग़ल में दिल-ए-दिलबर-ए-मा कुजा ब-रफ़्तकह दो कोई तबीब से जान-ए-अ'ज़ीज़-ए-मा ब-रफ़्त
आग़ा मुहम्मद दाऊद
शे'र
मुझे इ’श्क़ ने ये पता दिया कि न हिज्र है न विसाल हैउसी ज़ात का मैं ज़ुहूर हूँ ये जमाल उसी का जमाल है
अज़ीज़ सफ़ीपुरी
शे'र
कभी दैर-ओ-का'बः बता दिया कभी ला-मकाँ का पता दियाजो ख़ुदी को हम ने मिटा दिया तो वो अपने-आप में पा गए
अकबर वारसी मेरठी
कलाम
अनवर फ़र्रूख़ाबादी
ना'त-ओ-मनक़बत
जो सारी ख़ल्क़ है पाती अ'ता वो तेरी हैजो सारी ख़लक़ है करती सना वो तेरी है