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ना'त-ओ-मनक़बत
सर से पा तक लग रहे हैं मज़हर-ए-अनवार सेहू-ब-हू हैं मिरे वारिस सय्यद-ए-अबरार से
रशीद वारसी
ना'त-ओ-मनक़बत
शाह अकबर दानापूरी
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सूफ़ी शब्दावली
(ध्वनि) ׃पापों का अंधकार, जो क़ल्ब पर छा जाता है, और जिससे ईश्वरीय प्रकाश बंद हो जाता है.
क़िता'
लिल्लाह शाह-ए-उमम हो निगाह-ए-करम सुन लो मेरी सदावक़्त आख़िर है सूरत दिखा दो मुझे दीजो बिगड़ी बना
अब्र शाह वरसी
ना'त-ओ-मनक़बत
सख़ी का दरबार सज रहा है ग़रीब ख़ैरात पा रहे हैंउठो ऐ मंगतो कि मेरे दाता करम की दौलत लुटा रहे हैं
फ़ना बुलंदशहरी
ना'त-ओ-मनक़बत
मँगते हैं करम उन का सदा माँग रहे हैंदिन-रात मदीने की दु'आ माँग रहे हैं
ख़ालिद मह्मूद नक़्श्बंदी
ना'त-ओ-मनक़बत
हो गया जिस पर सदा तेरा करम या मुस्तफ़ाफिर कभी उस पर न आया कोई ग़म या मुस्तफ़ा
उवेस रज़ा अम्बर
ग़ज़ल
धोके पे धोका खाए जा 'इश्क़ को सादा कार करहुस्न के दिल में घर बना हुस्न पर ए'तिबार कर
नख़्शब जार्चवि
कलाम
एह तन रब्ब सच्चे दा हूजरा विच पा फ़क़ीरा झाती हून कर मिन्नत ख़्वाज ख़िज़र दी तैं अंदर आब हयाती हू
सुल्तान बाहू
बैत
मरा खुद कुशद तीर-ए-आँ चश्म-ए-मस्त
मरा ख़ुद कुशद तीर-ए-आँ चश्म-ए-मस्तचे हाजत कि आरी ब शमशीर दस्त ?