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शे'र
निकल कर ज़ुल्फ़ से पहुँचूँगा क्यूँकर मुसहफ़-ए-रुख़ परअकेला हूँ अँधेरी रात है और दूर मंज़िल है
अकबर वारसी मेरठी
शे'र
बाग़-ए-जहाँ के गुल हैं या ख़ार हैं तो हम हैंगर यार हैं तो हम हैं अग़्यार हैं तो हम हैं
ख़्वाजा मीर दर्द
शे'र
नौ ख़त तो हज़ारों हैं गुलिस्तान-ए-जहाँ मेंहै साफ़ तो यूँ तुझ सा नुमूदार कहाँ है
अ’ब्दुल रहमान एहसान देहलवी
शे'र
जहाँ हैं महव-ए-नग़्मा बुलबुलें गुल जिस में ख़ंदाँ हैंउसी गुलशन में कल ज़ाग़-ओ-ज़ग़न का आशियाँ होगा
अर्श गयावी
शे'र
जहाँ में ख़ाना-ज़ाद-ए-ज़ुल्फ़ को क्या छोड़ देते हैंकि तुम ने छोड़ रखा मुझ असीर-ए-ज़ुल्फ़-ए-पेचाँ को