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शे'र
होश न था बे-होशी थी बे-होशी में फिर होश कहाँयाद रही ख़ामोशी थी जो भूल गए अफ़्साना था
बेदम शाह वारसी
शे'र
फ़ना बुलंदशहरी
शे'र
ऐ चारागर-ए-ख़ुश-फ़हम ज़रा कुछ अक़्ल की ले कुछ होश की लेबीमार-ए-मोहब्बत भी तुझ से नादान कहीं अच्छा होगा
कामिल शत्तारी
शे'र
शम्स साबरी
शे'र
कि ख़िरद की फ़ित्नागरी वही लुटे होश छा गई बे-ख़ुदीवो निगाह-ए-मस्त जहाँ उठी मिरा जाम-ए-ज़िंदगी भर गया
फ़ना बुलंदशहरी
शे'र
ख़िरद है मजबूर अक़्ल हैराँ पता कहीं होश का नहीं हैअभी से आलम है बे-ख़ुदी का अभी तो पर्दा उठा नहीं है