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न क़ुर्ब-ए-गुल की ताब थी न हिज्र-ए-गुल में चैन थाचमन चमन फिरे हम अपना आशियाँ लिए हुए
बेदम शाह वारसी
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कहाँ चैन ख़्वाब-ए-अदम में था न था ज़ुल्फ़-ए-यार का ख़यालसो जगा के शोर ने मुझे इस बला में फँसा दिया
शाह नियाज़ अहमद बरेलवी
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मुझसे अव़्वल न था कुछ दह्र में जुज़ ज़ात-ए-ख़ुदाग़ैर-ए-हक़ देखा तो फिर कुछ न रहा मेरे बा’द
इम्दाद अ'ली उ'ल्वी
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होश न था बे-होशी थी बे-होशी में फिर होश कहाँयाद रही ख़ामोशी थी जो भूल गए अफ़्साना था
बेदम शाह वारसी
शे'र
वहाँ तो हज़रत-ए-ज़ाहिद तुम्हें अच्छों से नफ़रत थीयहाँ जन्नत में अब किस मुँह से तुम लेने को हूर आए
मुज़्तर ख़ैराबादी
शे'र
जल्वा-ए-हर-रोज़ जो हर सुब्ह की क़िस्मत में थाअब वो इक धुँदला सा ख़्वाब-ए-दोश है तेरे बग़ैर
सीमाब अकबराबादी
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मेरी आँख बंद थी जब तलक वो नज़र में नूर-ए-जमाल थाखुली आँख तो ना ख़बर रही कि वो ख़्वाब था कि ख़्याल था
बहादुर शाह ज़फ़र
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मैं ज़र्रा था मुझे ज़र्रे से आफ़्ताब कियाफिर अब न ज़र्रा बना आफ़्ताब कर के मुझे
क़ाज़ी ख़ालीलुद्दीन हसन
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ख़ून-ए-दिल जितना था सारा वक़्फ़-ए-हसरत कर दियाइस क़दर रोया कि मेरी आँख में आँसू नहीं
मुज़्तर ख़ैराबादी
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सिराज औरंगाबादी
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इ’श्क़ की बर्बादियों को राएगाँ समझा था मैंबस्तियाँ निकलीं जिन्हें वीरानियाँ समझा था मैं
जिगर मुरादाबादी
शे'र
पस-ए-मुर्दन इरादा दिल में था जो कू-ए-क़ातिल कालहद में ख़ुश हुआ मैं नाम सुनकर पहली मंज़िल का