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कलाम
फ़ना का जाम ऐ साक़ी मैं पी-पी लूँ तू भर-भर देबक़ा की मय से आँखें मिस्ल-ए-नर्गिस-ए-मस्त कर-कर दे
अलाउद्दीन जलाली
कलाम
हो ख़ैर तेरे मय-ख़ाने की तौक़ीर बढ़े पैमाने कीओ मस्त नज़र वाले साक़ी मस्ती भर दे ग़ाफ़िल कर दे
मुज़्तर ख़ैराबादी
कलाम
दिल ही तो है न संग-ओ-ख़िश्त दर्द से भर न आए क्यूँरोएँगे हम हज़ार बार कोई हमें सताए क्यूँ
मिर्ज़ा ग़ालिब
कलाम
मैं भूला आप की रिफ़'अत से निस्बत ही हमें क्या हैवो कहने भर की निस्बत थी कहाँ हम हैं कहाँ तुम हो
मुस्तफ़ा रज़ा ख़ान
कलाम
बहर-जल्वा न रुस्वा कर मज़ाक़-ए-चश्म-ए-हैराँ कोयही बातें निगाहों से गिरा देती हैं इंसाँ को
सीमाब अकबराबादी
कलाम
अंदर हू ते बाहर हौ हू बाहर कत्थे जलेंदा हूहू दा दाग़ मोहब्बत वाला हर-दम नाल सड़ेंदा हू