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है वज्ह कोई ख़ास मिरी आँख जो नम है

फ़ना बुलंदशहरी

है वज्ह कोई ख़ास मिरी आँख जो नम है

फ़ना बुलंदशहरी

है वज्ह कोई ख़ास मिरी आँख जो नम है

बस इतना समझता हूँ कि ये उन का करम है

ये इश्क़ की मेराज है या उन का करम है

हर वक़्त मिरे सामने तस्वीर-ए-सनम है

काबे से तअ'ल्लुक़ है बुत-ख़ाने का ग़म है

हासिल मिरे सज्दों का तिरा नक़्श-ए-क़दम है

दीवानों पे किस दर्जा तिरा लुत्फ़-ओ-करम है

बख़्शा है जो ग़म तू ने वही हासिल-ए-ग़म है

सर जब से झुकाया है दर-ए-यार पे मैं ने

मेहराब-ए-ख़ुदी जल्वा-गह-ए-शम-ए-हरम है

क्या काम ज़माने से उसे शह-ए-ख़ूबाँ

तक़दीर में जिस की तिरी फ़ुर्क़त का अलम है

कौनैन बदल जाए मगर तू बदलना

तेरे ही सबब अहल-ए-मोहब्बत का भरम है

पलकों पे बिखरते हैं तिरी याद के मोती

हर अश्क-ए-नदामत तिरा अंदाज़-ए-करम है

ज़ाहिर में कोई का'बा कोई दैर-ओ-कलीसा

बातिन में हर इक चीज़ तिरा नक़्श-ए-क़दम है

कर अपनी नज़र से मिरे ईमान का सौदा

दोस्त तुझे मेरी मोहब्बत की क़सम है

ये उम्र गुज़र जाए मगर होश आए

सर शौक़-ए-इबादत में दर-ए-यार पे ख़म है

दोस्त तिरे इश्क़ में पहुँचा हूँ यहाँ तक

आँखों में सनम-ख़ाना है सीने में हरम है

किस तरह 'फ़ना' छोड़ूँ सनम-ख़ाना-ए-उलफ़त

हासिल मिरे ईमान का दीदार-ए-सनम है

दुनिया से निराली है 'फ़ना' मक़्तल-ए-उल्फ़त

इस मक़्तल-ए-उल्फ़त में जो सर है वो क़लम है

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क़मर वारसी

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