क़िस्सः-ए-बाज़र्गाँ कि तूती-ए-ऊ रा पैग़ाम दाद ब-तूतियान-ए-हिन्दुस्तान हंगाम-ए-रफ़्तन ब-तिजारत
एक सौदा गर का क़िस्सा जो हिन्दोस्तान को तिजारत के लिए जा रहा था और एक क़ैदी तूती का हिन्दोस्तान की तूतियों को पैग़ाम देना
बूद बाज़र्गान-ए-ऊ रा तूतिए
दर क़फ़स महबूस ज़ेबा तूतिए
एक सौदा गर के पास एक तूती थी
एक ख़ूबसूरत तोती जो पिंजरे में क़ैदी थी
चूँकि बाज़र्गाँ सफ़र रा साज़ कर्द
सू-ए-हिंदुस्ताँ शुदन आग़ाज़ कर्द
जब सौदा गर ने सफ़र का सामान किया
और हिन्दोस्तान की तरफ़ रवानगी आग़ाज़ किया
हर ग़ुलाम-ओ-हर कनीज़क रा ज़ जूद
गुफ़्त बहर-ए-तू चे आरम गोए-ज़ूद
हर ग़ुलाम और लौंडी को बतौर बख़शिश के
कहा, जलद बता, तेरे लिए क्या लाऊँ?
हर यके अज़ वै मुरादे ख़्वास्त कर्द
जुम्लः रा वा'दा ब-दाद आँ नेक मर्द
हर एक ने उस से अपनी एक ख़्वाहिश ज़ाहिर की
इस नेक मर्द ने सबसे वाअदा किया
गुफ़्त तूती रा चे ख़्वाही अरमुग़ाँ
कारमत अज़ ख़ित्तः-ए-हिंदुस्ताँ
उस ने तूती से कहा तू क्या सौग़ात चाहती है
जो तेरे लिए हिन्दोस्तान से लाऊँ?
गुफ़्त आँ तूती कि आँ-जा तूतियाँ
चूँ ब-बीनी कुन ज़ हाल-ए-मा बयाँ
उस तूती ने उस से कहा वहाँ तूतियाँ हैं
जब तू देखे, मेरा हाल बयान कर देना
काँ फुलाँ तूती कि मुश्ताक़-ए-शुमास्त
अज़ क़ज़ा-ए-आसमाँ दर हब्स-ए-मास्त
कि फ़ुलाँ तूती जो तुम्हारी मुश्ताक़ है
आसमानी फ़ैसला के मुताबिक़ वो हमारी क़ैद में है
बर शुमा कर्द ऊ सलाम-ओ-दाद ख़्वास्त
वज़ शुमा चारः-ओ-रह इरशाद ख़्वास्त
उस ने तुम्हें सलाम कहा है और इन्साफ़ की दरख़्वास्त की है
और तुम से रास्ता की तदबीर और रहनुमाई चाही है
गुफ़्त मी-शायद कि मन दर इश्तियाक़
जाँ देहम ईंं-जा ब-मीरम दर फ़िराक़
उस ने कहा है क्या ये मुनासिब है कि मैं शौक़ में
इस जगह जान देदूँ और फ़िराक़ में मर जाऊँ
ईं रवा बाशद कि मन दर बंद-ए-सख़्त
गह शुमा बर सब्ज़ः-गाहे बर दरख़्त
क्या ये जाइज़ होगा कि मैं सख़्त क़ैद में रहूँ
और तुम कभी सब्ज़ा पर और कभी दरख़्त पर?
ईं चुनीं बाशद वफ़ा-ए-दोस्ताँ
मन दरीं हब्स-ओ-शुमा दर बोस्ताँ
ऐ दोस्तो! वफ़ा ऐसी ही होती है
मैं इस क़ैद में रहूँ और तुम बाग़ में?
याद आरेद ऐ महाँ ज़ीं मुर्ग़-ए-ज़ार
यक सुबूह-ए-दरमियान-ए-मर्ग़-ज़ार
ऐ साहिबान! इस तबाह-हाल परिंद को याद कर लो
किसी सुबह को सब्ज़ा-ज़ार में
याद-ए-याराँ यार रा मैमूँ बुवद
ख़ासः काँ लैला-ओ-ईं मज्नूँ बुवद
दोस्तों की याद दोस्त के लिए मुबारक होती है
ख़ुसूसन जबकि वो लैला और मजनूँ हो
ऐ हरीफ़ान-ए-बुत-ए-मौज़ून-ए-ख़ुद
मन क़दह-हा मी ख़ुरम पुर ख़ून-ए-ख़ुद
ऐ दोस्तो (तुम) अपने हसीन महबूब के साथ (जाम नोश कर रहे हो)
मैं अपने ख़ून के प्याले पी रही हूँ
यक क़दह मय नोश कुन बर याद-ए-मन
गर हमी ख़्वाही कि ब-देही दाद-ए-मन
मेरी याद में एक प्याला शराब का पी
अगर मेरे हक़ में इन्साफ़ करना चाहता है
या ब-याद-ए-ईं फ़ितादः ख़ाक-बेज़
चूँकि ख़ुर्दी जुर्'आ ऐ बर ख़ाक-रेज़
या, इस उफ़्तादा ख़ाक छानने वाले की याद में
जब तू पिए, एक घूँट ज़मीन पर बहा दे
ऐ 'अजब आँ 'अहद-ओ-आँ सौगंद कू
वा'दः-हा-ए-आँ लब-ए-चूँ क़ंद कू
हाय ताज्जुब! वो वाअदा और कसमें कहाँ गईं?
उस शकर जैसे होंट के वाअदे कहाँ गए?
गर फ़िराक़-ए-बंदः अज़ बद बंदगीस्त
चूँ तु बा-बद बद कुनी पस फ़र्क़ चीस्त
अगर बंदा से जुदाई उसकी बंदगी कोताही की वजह से है
जब तू बुरे के साथ बुरा करे तो फ़र्क़ क्या है?
ऐ बदी कि तू कुनी दर ख़श्म-ओ-जंग
बा-तरब तर अज़ समा'-ओ-बाँग-ए-चंग
ऐ (ख़ुदा) तो जो बुराई गु़स्सा और लड़ाई में करता है
सारंगी की आवाज़ के सुनने से भी ख़ुशगवार है
ऐ जफ़ा-ए-तू ज़ दौलत ख़ूब-तर
ओ इंतिक़ाम-ए-तू ज़ जाँ महबूब-तर
ऐ ख़ुदा तेरा ज़ुल्म (दुनिया की) दौलत से बेहतर है
और तेरा इन्तिक़ाम जान से ज़्यादा प्यारा है
नार-ए-तु ईंस्त नूरत चूँ बुवद
मातम ईं ता ख़ुद कि सूरत चूँ बुवद
तेरी आग ये है तो तेरा नूर कैसा होगा?
तेरा ग़म ऐसा है तो तेरी शादी कैसी होगी?
अज़ हलावत-हा कि दारद जौर-ए-तू
वज़ लताफ़त कस नयाबद ग़ौर-ए-तू
तेरा ज़ुल्म जो शीरीनियाँ रखता है
और लताफ़त, कोई शख़्स तेरी गहराई को नहीं पा सकता है
नालम-ओ-तर्सम कि ऊ बावर कुनद
वज़ करम आँ जौर रा कमतर कुनद
मैं रोता हूँ और डरता हूँ कि वो यक़ीन कर ले
और रहम खा कर ज़ुल्म को घटा दे
'आशिक़म बर क़ह्र-ओ-बर लुत्फ़श ब-जिद
बुल-'अजब मन आशिक़-ए-ईं हर दो ज़िद
मैं उस के क़हर और मेहरबानी पर वाक़ियातन आशिक़ हूँ
ताज्जुब है में इन दो मुख़ालिफ़ चीज़ों का आशिक़ हूँ
वल्लाह अर ज़ीं ख़ार दर बुस्ताँ शवम
हम-चु बुलबुल ज़ीं सबब नालाँ शवम
वल्लाह अगर इस ख़ार से (हट कर) बाग़ में चला जाऊँ
इस वजह से बुलबुल की तरह नाला करूँ
ईं 'अजब बुलबुल कि ब-गुशायद दहाँ
ता-ख़ुरद ऊ ख़ार रा बा-गुलिस्ताँ
ये अजीब बुलबुल है कि मुंह फैलाई है
ताकि गुलसिताँ को मा कांटे के निगल ले
ईं चे बुलबुल ईं नहंग-ए-आतिशीस्त
जुमल: ना-ख़ुश-हा ज़ 'इश्क़ ऊ रा ख़ुशीस्त
ये बुलबुल नहीं है (बल्कि) ये आग का मगरमच्छ
इश्क़ की वजह से तमाम नागवारीयाँ उसको गवारा हैं
'आशिक़-ए-कुल्लस्त-ओ-ख़ुद कुल्लस्त ऊ
'आशिक़-ए-ख़्वेशस्त-ओ-'इश्क़-ए-ख़्वेश जू
वो कुल का आशिक़ है और वो ख़ुद कुल है
अपने आपका आशिक़ है और अपने इशक़ जोयाँ है
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