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रबूद: फ़िराक़-ए-तू अज़ मन क़रारम

अज़म चिश्ती

रबूद: फ़िराक़-ए-तू अज़ मन क़रारम

अज़म चिश्ती

MORE BYअज़म चिश्ती

    रबूद: फ़िराक़-ए-तू अज़ मन क़रारम

    बिया जान-ए-जानाँ कि दर इंतिज़ारम

    तुम्हारी जुदाई ने मुझसे मेरा चैन और क़रार सब छीन लिया है, मेरे माशूक़ चले आओ कि मैं तुम्हारा इंतज़ार कर रहा हूँ।

    मरा नीस्त जुज़ याद तू हेच कारे

    ब-जुज़ दर्द-ए-तू यार यारे न-दारम

    तुम्हें याद करने के सिवा मेरे पास और कोई काम नहीं, और तुम्हारे दर्द के अलावा मेरा कोई साथी नहीं है।

    चे ख़ूँ-ख़्वार दर्द-ए-जिगर सोज़ दादी

    कि बरक़रारस्त-ओ-मन बे-क़रारम

    यह किस क़दर अंदोहनाक और अज़ीयत नाक दर्द दिया है कि वह बर्क़रार और बाक़ी है और मैं बेक़रार हो गया हूँ।

    चे निस्बत कि दर हल्क़ः-ए-तू नशीनम

    तू शाह-ए-जहानी-ओ-मन ख़ाक-सारम

    मेरी क्या मजाल कि मैं तुम्हारे आस-पास भी बैठ सकूं इसलिए कि तुम बादशाह हो और मैं हक़ीर।

    शब-ओ-रोज़ मय-नोशम अज़ चश्म-ए-साक़ी

    'अजब ख़ुश-नसीबम 'अजब बाद:-ख़्वारम

    मैं दिन रात चश्म साकी से शराबनोशी करता हूँ, मैं कितना ख़ुशनसीब शराबख़्वार हूँ।

    गदा-ऐ-तु-अम बे-नियाज़म ज़ हर-कस

    ग़ुलाम-ए-तु-अम ज़ीं सबब ताज-दारम

    मैं फ़क़ीर हूँ, सिर्फ़ तुम्हारा फ़क़ीर हूँ और किसी की मुझे परवाह नहीं है। मैं तुम्हारा ग़ुलाम हूँ और इसी वजह से ताजदार हूँ।

    नमी तर्सम 'आज़म' अशरार-ए-'आलम

    कि मद्दाह-ए-सरकार-ए-’आली वक़ारम

    आज़म मैं दुनिया के किसी शर से नहीं डरता क्योंकि मैं सरकार-ए-आली वक़ार आँ-हज़रत का मदह-ख़्वाँ हूँ।

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