Font by Mehr Nastaliq Web

शोर अफ़्गंदन ब-आ'लम चूँ कि ख़ुद मंज़ूर बूद

अहमद शाहजहाँपुरी

शोर अफ़्गंदन ब-आ'लम चूँ कि ख़ुद मंज़ूर बूद

अहमद शाहजहाँपुरी

शोर अफ़्गंदन ब-आ'लम चूँ कि ख़ुद मंज़ूर बूद

जल्व: कर्द आँ हुस्न रा कज़ चश्म्हा मस्तूर बूद

दुनिया में शोर और हंगामा उठाना उसे मंज़ूर था इसलिए उसने अपने छिपे हुए हुस्न को ज़ाहिर कर दिया।

आँ परी अज़ दीद:-ए-ख़ुद ख़्वेश्तन मस्तूर बूद

लेक मैल-ए-दीदन-ए-हुस्न-ए-ख़ुदश मंज़ूर बूद

वह हसीन परी वश अपनी नज़रों से खुद पोशीदा था, लेकिन वह खुद अपना हुस्न देखना चाहता था।

अज़ निगाह-ए-मस्त-ए-साक़ी-ओ-सुरूद-ए-मुत्रिबाँ

हर यके दर बज़्म-ए-जानाँ बे-ख़ुद-ओ-मख़मूर बूद

साक़ी की मस्त निगाहों और संगीतकारों के गायन से महफ़िल-ए-यार में हर एक मसरूर और मदहोश है।

बे-दिली-ओ-नंग-ओ-रुस्वाई-ओ-बद-नामी तमाम

आ'शिक़ाँ रा अज़ क़ज़ा-ओ-अज़ क़दर मंशूर बूद

तमाम बेदिली, आर और ऐब, रुस्वाई और बदनामी अज़ल से आशिक़ों की तक़दीर बन चुकी हैं।

'अहमदा' गर आ'शिक़ी अज़ तेग़-ए-जानाँ सर म-ताब

कुश्तन-ए-उ'शशाक़ अंदर कू-ए-ऊ दस्तूर बूद

अहमद, अगर तू सच्चा आशिक़ है तो महबूब की तलवार के आगे से पीछे मत हट, इसलिए कि आशिक़ों का क़त्ल इस गली का दस्तूर है।

स्रोत :
  • पुस्तक : नग़्मात-ए-सिमा (पृष्ठ 123)
  • प्रकाशन : नूरुलहसन मौदूदी साबरी (1935)

Additional information available

Click on the INTERESTING button to view additional information associated with this sher.

OKAY

About this sher

Lorem ipsum dolor sit amet, consectetur adipiscing elit. Morbi volutpat porttitor tortor, varius dignissim.

Close

rare Unpublished content

This ghazal contains ashaar not published in the public domain. These are marked by a red line on the left.

OKAY
बोलिए