ख़्वाजा ग़रीब नवाज़ के सूफ़ी पत्र
मक्तूब नंबर 4
बिस्मिल्लाहिर्रहमानिर्रहीम हक़ाएक़-ओ-मआ’रिफ़ से वाक़िफ़, रब्बुल आ’रिफ़ीन के आ’शिक़ मेरे भाई क़ुतुबुददीन… वाज़ेह रहे कि इन्सानों में सबसे दाना या ज्ञानी फ़क़ीर लोग हैं, जिन्हों ने दरवेशी और ना-मुरादी को इख़्तियार कर रखा है, क्योंकि हर एक मुराद में
मक्तूब नंबर 1
बिस्मिल्लाहिर्रहमानिर्रहीम मेरे प्यारे, मेरे क़ल्बी दोस्त, मेरे भाई क़ुतुबुद्दीन देहलवी अल्लाह तआ’ला आपको दोनों जहाँ की सआ’दत अ’ता फ़रमाए। बंदा-ए-मिस्कीन मुई’नुद्दीन की तरफ़ से सलाम-ए-मस्नूना के बा’द वाज़ेह हो कि असरार-ए-इलाही के चंद निकात मैं
मक्तूब नंबर 5
बिस्मिल्लाहिर्रहमानिर्रहीम वासिलों के बर्गुज़ीदा। रब्बुल-आ’लमीन के आ’शिक़’ मेरे भाई क़ुतुबुद्दीन देहलवी (मा’बूद-ए-हक़ीक़ी की पनाह में होकर शाद काम रहें) एक रोज़ ये दुआ’-गो हज़रत ख़्वाजा उ’स्मान हारूनी रहमतुल्लाह अ’लैह की ख़िदमत में हाज़िर था कि
मक्तूब नंबर 2
बिस्मिल्लाहिर्रहमानिर्रहीम “मेरे भाई ख़्वाजा क़ुतुबुद्दीन देहलवी, अल्लाह तआ’ला दोनों जहान में आपको सआ’दत नसीब करे”। सलाम-ए-मस्नूना के बा’द ये मक़्सूद है कि एक रोज़ हज़रत उ’स्मान हारूनी की ख़िदमत में ख़्वाजा नज्मुद्दीन साहिब रहमतुल्लाहि अ’लैह, सोग़रा
मक्तूब नंबर 7
बिस्मिल्लाहिर्रहमानिर्रहीम आ’रिफ़-ए-मआरिफ़, हक़-आगाह, आशिक़-ए-ख़ुदा, मेरे भाई क़ुतुबुद्दीन अल्लाह पाक आपके फ़क़्र को ज़्यादा करे। दुआ-गो की तरफ़ से प्यार भरे सलाम के बा’द अर्ज़ है- अ’ज़ीज़-ए-मन ! अपने मुरीदों को ज़रूर बता देना कि फ़क़ीर-ओ-मुर्शिद