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सूफ़ी कहावत
तर और ख़ुश्क बा-हम मी सोज़ंद
गीला और सूखा साथ में जलते हैं (अर्थात,गेहूं के साथ घुन भी पिसता है)।
वाचिक परंपरा
ना'त-ओ-मनक़बत
मतला-ए’-फ़ाराँ से चमका वो ’अजब-तर आफ़ताबदेर तक देखा किया हैरत से छुप कर आफ़ताब
अदीब सहारनपुरी
फ़ारसी कलाम
दिलम दर आ'शिक़ी आवारः शुद आवारः-तर बादातनम अज़ बे-दिली बे-चार: शुद बे-चार:-तर बादा
अमीर ख़ुसरौ
ग़ज़ल
शबनम तो बाग़ में है न यूँ चश्म-ए-तर कि हमग़ुंचः भी इस क़दर है न ख़ूनी जिगर कि हम
मीर मोहम्मद बेदार
ना'त-ओ-मनक़बत
अदब से अ'र्ज़ है बा-चश्म-ए-तर ग़रीब-नवाज़इधर भी एक उचटती नज़र ग़रीब-नवाज़