आहट पर अशआर
आहट: आहट हिन्दी ज़बान
में मस्दर ‘आना’ और ‘हटना’ से अ’लामत-ए-मसादिर गिरा कर आ और हट लगाने से बना है। हिन्दी में बतौर-ए-इस्म मुस्ता’मल है। उर्दू ज़बान में दाख़िल हो कर भी अस्ली हालत और मा’नी में ही इस्ति’माल हुआ है।सबसे पहले 1713 ई’स्वी में फ़ाइज़ देहलवी के दीवान में इसका इस्ति’माल हुआ है। आने जाने या चलने की हल्की सी आवाज़ या ख़फ़ीफ़ सी चाप को आहट कहा जाता है। सूफ़ी शो’रा के यहाँ आहट का अनोखा इस्ति’माल पढ़ने को मिलेगा।
पड़ गया पर्दा समाअ'त पर तिरी आवाज़ का
एक आहट कितने हंगामों पे हावी हो गई