इजाज़त हो तो हम इस शम्अ'-ए-महफ़िल को बुझा डालें
तुम्हारे सामने ये रौशनी अच्छी नहीं लगती
आप की मज्लिस-ए-आ’ली में अ’लर्रग़्म रक़ीब
ब-इजाज़त ये गुनहगार उठे और बैठे
टुक शिकायत की अब इजाज़त हो
नहीं रुकती ज़बान पर आई
मिली सज्दा की इजाज़त जूँही पासबाँ से पहले
मुझे मिल गई ख़ुदाई तेरे आस्ताँ से पहले
वो आए हैं ज़रा मैं बात कर लूँ
इजाज़त ऐ दिल-ए-दर्द-आश्ना दे
अब इजाज़त दफ़्न की हो जाए तो जन्नत मिले
यार के कूचे में हम ने जा-ए-मदफ़न की तलाश
गर इजाज़त हो तो परवाना की तरह
सदक़ा होने को तुम्हारे आइए
मुझे गर्म-ए-नज़्ज़ारा देखा तो हँस कर
वो बोले कि इस की इजाज़त नहीं है