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काँटा पर अशआर

काँटा या ख़ारः काँटा

और ख़ार दोनों मुतरादिफ़ अल्फ़ाज़ हैं। जो चीज़ें राह-ए-सुलूक में रुकावट बनती हैं उन्हें ख़ार या काँटा कहा जाता है। सालिक के लिए उसकी ख़ुदी सबसे बड़ी रुकावट है जो राह-ए-सुलूक में रुकावट पैदा करती रहती है।ख़ार या काँटा का इस्ति’माल गुल के मुक़ाबला में किया जाता है।या’नी हुस्न-ओ-बद-सूरती,अच्छाई-ओ-बुराई, आसानी-ओ-दुशवारी, ख़ुशी-ओ-ग़म महबूब-ओ-रक़ीब, उम्मीद और ना-उम्मीदी गुल-ओ-ख़ार के इस्तिआ’रे हैं।

वस्ल में झगड़ा बखेड़ा रात-भर उन से रहा

साही का काँटा अदू ने ज़ेर-ए-बिस्तर रख दिया

कौसर ख़ैराबादी

बाग़ से दौर-ए-ख़िज़ाँ सर जो टपकता निकला

क़ल्ब-ए-बुलबुल ने ये जाना मेरा काँटा निकला

मुज़्तर ख़ैराबादी

तअ'ल्लुक़ तो उस गुल से छोड़ा मगर

कलेजे में काँटा चुभा रह गया

मुज़्तर ख़ैराबादी

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