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ख़िर्क़ा पर अशआर

ख़िर्क़ाः ख़िर्क़ा का

लुग़वी मा’नी गुदरी, पैवंद लगा हुआ कपड़ा या पुराना और फटा हुआ कपड़ा होता है।तसव्वुफ़ में पीर के उस लिबास को ख़िर्क़ा कहते हैं जो मुरीद करते वक़्त या ख़िलाफ़त-ओ-इजाज़त देते वक़्त किसी मुरीद को अ’ता किया जाता है।इसे ख़िर्क़ा-ए-तसव्वुफ़ भी कहते हैं। इस तरीक़े को मशाइख़-ए-तरीक़त ने बराबर जारी रखा है।ज़ाहिरी उमूर की हिफ़ाज़त-ओ-दुरुस्ती को भी ख़िर्क़ा कहा जाता है।

कार-ए-मजाज़ मुझ पे हुआ इस क़दर बुलंद

ख़िर्क़ा को चाक कर के क्या हा-ओ-हू करें

अता हुसैन फ़ानी

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