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क़व्वाली का अहद-ए-ईजाद और समाजी पस-ए-मंज़र

अकमल हैदराबादी

क़व्वाली का अहद-ए-ईजाद और समाजी पस-ए-मंज़र

अकमल हैदराबादी

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    रोचक तथ्य

    ’’قوالی امیر خسرو سے شکیلا بانو تک‘‘ سے ماخوذ۔

    मूजिद-ए-क़व्वाली हज़रत अमीर ख़ुसरो का ‘अह्द इब्तिदा-ए-इस्लाम और मौजूदा ‘अह्द के ठीक दरमियान का ‘अह्द है और क़व्वाली का ‘अह्द-ए-ईजाद अमीर ख़ुसरो के अह्द-ए-हयात 1253 ता 1325 के ठीक दरमियान का ‘अह्द है जब कि हिन्दोस्तान पर ख़िल्जी ख़ानदान का इक़्तिदार था और इस मुल्क में वेदांत-ओ-भगती तहरीक की कार-फ़रमाई के ‘अलावा सुल्तान-उल-मशाइख़ हज़रत निज़ामुद्दीन औलिया की तहरीकात-ए-तसव्वुफ़ का उरूज था, तारीख़ शाहिद है कि इस दौर में हिन्दोस्तान एक दो नहीं बल्कि बे-शुमार रंगों, नस्लों, तब्क़ों, ज़बानों, मज़हबों और तहज़ीबों का संगम था, ख़ुसूसियत के साथ हिंदू मुस्लिम तहज़ीब इंतिहाई ख़ुलूस के साथ एक दूसरे की रस्मों, रीतों, रिवायतों और तौर तरीक़ों को अपना रही थीं और उर्दू जैसी नई ज़बान फ़रोग़ पा रही थी, तमाम मज़ाहिब के मिल बैठने के लिए मुख़्तलिफ़ सूरतों से फ़ज़ा हमवार की जा रही थी मुख़्तलिफ़ उन्वानत-ए-हम-आहंगी तलाश किए जा रहे थे, उसी ‘अह्द में हज़रत अमीर ख़ुसरो ने क़व्वाली की बिना डाली।

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