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बर्क़ वारसी

छपरा, भारत

बर्क़ वारसी के अशआर

हर इक अदा को तिरी ला-जवाब कहते हैं

सितम को भी करम-ए-बे-हिसाब कहते हैं

मसर्रतें भी हैं 'बर्क़' ग़म का आईना

सुकून को भी तो हम इज़्तिराब कहते हैं

तुम्हारा आईना-ए-दिल है कुछ ग़ुबार-आलूद

तुम अपने आईना-ए-दिल को ताबदार करो

हर एक जुज़्व है आईना वुसअ’त-ए-कुल का

हर एक हर्फ़ को हम एक किताब कहते हैं

मसर्रतें भी हैं 'बर्क़' ग़म का आईना

सुकून को भी तो हम इज़्तिराब कहते हैं

aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere

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