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मुज़्तर ख़ैराबादी

1856 - 1927 | ग्वालियर, भारत

हिन्दुस्तान के मा’रूफ़ ख़ैराबादी शाइ’र और जाँ-निसार अख़तर के पिता

हिन्दुस्तान के मा’रूफ़ ख़ैराबादी शाइ’र और जाँ-निसार अख़तर के पिता

मुज़्तर ख़ैराबादी के दोहे

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मैं खोटी हूँ तुम खरे खरे तुम्हारे काज

खोट खोट सब छाँट दो खरा बना दो आज

पी मोरा मन पीउ की पी दिन हैं मैं रैन

जैसे नजरिया एक है देखत के दो नैन

तुम ही जगत-महराज हो और 'मुज़्तर' तुमरे दास

जिन हालन चाहो रखो पर रखना अपने पास

तन पाया तब मन मिला मन पाया तब पीउ

तन-मन दोनों पी के हैं पी का नाम है जीउ

चित्त मोरा बे-चित्त किया मार के नैनाँ बान

मित्र बने तुम चित्र के चित्र किया क़ुर्बान

नैणा वही सराहिए जिन नैना बिच लाज

बड़े भए और बिस भरे तो आवन कौने काज

दर्शन जल की प्यास है कुछ भी नहीं है चाव

तुम जग-दाता बज रहे तो काम हमारे आओ

तन मीटे मन वार दे यही प्रीत की आन

जो अपना आपा तजे सो वा का दासी जान

जब बिप्ता पड़ जात है छोड़ देत सब हाथ

देत अँधेरी रैन में कब परछाईं साथ

मालिक ही के नाम की माला फेरत लोग

मालिक मेटे तब मिटे निपट बिपत का रोग

aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere

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