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Sufinama
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कवि दिलदार

कवि दिलदार के अशआर

गर आशिक़-ए- सादिक़ है उस का मत उल्फ़त तू ग़ैर से जोड़

ज़ुल्म करे या सितम करे तू इश्क़ से उस के मुँह मत मोड़

जब इ’श्क़ आ’शिक़ बेबाक करे तब पावे अपने मतलब को

तन मन को मार के ख़ाक करे तब पावे अपने मतलब को

गर तालिब-ए-अल्लाह हुआ है इ’श्क़ को पहले पैदा कर

प्रेम की चक्की में दिल अपना पीस पिसा कर मैदा कर

aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere

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