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Shah Niyaz Ahmad Barelvi's Photo'

शाह नियाज़ अहमद बरेलवी

1775 - 1834 | बरेली, भारत

हिन्द-ओ-पाक के मा’रूफ़ रुहानी शाइ’र

हिन्द-ओ-पाक के मा’रूफ़ रुहानी शाइ’र

शाह नियाज़ अहमद बरेलवी के अशआर

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हिज्र की जो मुसीबतें अ’र्ज़ कीं उस के सामने

नाज़-ओ-अदा से मुस्कुरा कहने लगा जो हो सो हो

हम को याँ दर-दर फिराया यार ने

ला-मकाँ में घर बनाया यार ने

ख़्वाजा-ए-ला-मकान-ओ-क़ुद्स-मुक़ाम

आसमाँ आस्ताँ मोइनुद्दीन

सूरत-ए-गुल में खिलखिला के हँसा

शक्ल-ए-बुलबुल में चहचहा देखा

नीस्ती हस्ती है यारो और हस्ती कुछ नहीं

बे-ख़ुदी मस्ती है यारो और मस्ती कुछ नहीं

चादर से मौज के छुपे चेहरा आप का

बुर्क़ा हबाब का हो बुर्क़ा हबाब का

इ’श्क़ में तेरे कोह-ए-ग़म सर पे लिया जो हो सो हो

ऐ’श-ओ-निशात-ए-ज़िंदगी छोड़ दिया जो हो सो हो

आप अपने देखने के वास्ते

हम को आईना बनाया यार ने

नुक्ता-ए-ईमान से वाक़िफ़ हो

चेहरा-ए-यार जा-ब-जा देखा

तू ने अपना जल्वा दिखाने को जो नक़ाब मुँह से उठा दिया

वहीं हैरत-ए-बे-खु़दी ने मुझे आईना सा दिखा दिया

जान जाती है चली देख के ये मौसम-ए-गुल

हिज्र-ओ-फ़ुर्क़त का मिरी जान ये गुलफ़ाम नहीं

लाया तुम्हारे पास हूँ या पीर अल-ग़ियास

कर आह के क़लम से मैं तहरीर अल-ग़ियास

तू ने अपना जल्वा दिखाने को जो नक़ाब मुँह से उठा दिया

वहीं हैरत-ए-बे-खु़दी ने मुझे आईना सा दिखा दिया

इ’श्क़ में पूजता हूँ क़िब्ला-ओ-काबा अपना

एक पल दिल को मिरे उस के बिन आराम नहीं

इ'श्क़ में तेरे कोह-ए-ग़म सर पे लिया जो हो सो हो

ऐश-ओ-निशात-ए-ज़िंदगी छोड़ दिया जो हो सो हो

होता अगर उस के तमाशे में तहय्युर

हैरत से मैं आईना-ए-नमत-ए-दंग होता

इस आईना-रू के वस्ल में भी मुश्ताक़-ए-बोस-ओ-कनार रहे

आ’लम-ए-हैरत तेरे सिवा ये भी हुआ वो भी हुआ

कहाँ चैन ख़्वाब-ए-अदम में था था ज़ुल्फ़-ए-यार का ख़याल

सो जगा के शोर ने मुझे इस बला में फँसा दिया

aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere

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