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सुल्तान बाहू

1630 - 1691 | शोरकोट, पाकिस्तान

पंजाबी और फ़ारसी ज़बान के मा’रूफ़ सूफ़ी शाई’र

पंजाबी और फ़ारसी ज़बान के मा’रूफ़ सूफ़ी शाई’र

सुल्तान बाहू के अशआर

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पढ़ पढ़ इ’ल्म हज़ार कताबाँ आ’लिम होए भारे हू

हर्फ़ इक इ’श्क़ दा पढ़ जाणन भुल्ले फिरन विचारे हू

इ’श्क़ माही दे लाइयाँ अग्गीं लग्गी कौण बुझावे हू

मैं की जाणाँ ज़ात इ’श्क़ जो दर दर जा झुकावे हू

इन्दर कलमा कल-कल करदा इ’श्क़ सिखाया कलमा हू

चोदाँ तबक़े कलमे अंदर छड किताबाँ अलमाँ हू

जिस मंज़ूल नूँ इ’श्क़ पहुँचावे, ईमान ख़बर कोई हू

इ’श्क़ सलामत रक्खीं 'बाहू' देयाँ ईमान धरोई हू

ईमान सलामत हर कोई मंगे इ’श्क़ सलामत कोई हू

जिस मंज़ल नूँ इ’श्क़ पहुँचावे ईमान ख़बर कोई हू

मुर्शिद मक्का तालिब हाजी का’बा इ’श्क़ बड़ाया हू

विच हुज़ूर सदा हर वेले करिए हज सवाया हू

आ’शिक़ इ’श्क़ माही दे कोलों फिरन हमेशा खीवे हू

जींदे जान माही नूँ डित्ती दोहीं जहानीं जीवे हू

आ’शिक़ हो ते इ’श्क़ कमा दिल रक्खीं वांग पहाड़ाँ हू

सै सै बदियाँ लक्ख उलाहमें, जाणीं बाग़-बहाराँ हू

इश्क़ दी गल्ल अवल्ली जेहड़ा शरआ’ थीं दूर हटावे हू

क़ाज़ी छोड़ कज़ाई जाण जद इश्क़ तमाँचा लावे हू

ईमान सलामत हर कोई मंगे इश्क़ सलामत कोई हू

माँगण ईमान शरमावण इश्क़ोंं दिल नूँ ग़ैरत होई हू

अंदर भाई अंदर बालण अंदर दे विच धूहाँ हू

शाह-रग थीं रब्ब नेड़े लद्धा इश्क़ कीताम जद सूहाँ हू

इ’श्क़ असानूँ लिस्याँ जाता कर के आवे धाई हू

जित वल वेखां इ’श्क़ दिसीवे ख़ाली जा काई हू

मंगण ईमान शरमावण इ’श्क़ोंं दिल नूँ ग़ैरत होई हू

इश्क़ सलामत रक्खीं 'बाहू' देयाँ ईमान धरोई हू

जिन्हाँ इ’श्क़ हक़ीक़ी पाया मूँहों ना अलावत हू

ज़िकर फ़िकर विच रहण हमेशा दम नूँ क़ैद लागवन हू

गूढ़ ज़ुल्मात अंधेर ग़ुबाराँ राह ने ख़ौफ़ ख़तर दे हू

आब हयात मुनव्वर चश्मे साए ज़ुलफ़ अंबर दे हू

aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere

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