सुल्तान बाहू के अशआर
पढ़ पढ़ इ’ल्म हज़ार कताबाँ आ’लिम होए भारे हू
हर्फ़ इक इ’श्क़ दा पढ़ न जाणन भुल्ले फिरन विचारे हू
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इ’श्क़ माही दे लाइयाँ अग्गीं लग्गी कौण बुझावे हू
मैं की जाणाँ ज़ात इ’श्क़ जो दर दर जा झुकावे हू
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इन्दर कलमा कल-कल करदा इ’श्क़ सिखाया कलमा हू
चोदाँ तबक़े कलमे अंदर छड किताबाँ अलमाँ हू
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जिस मंज़ूल नूँ इ’श्क़ पहुँचावे, ईमान ख़बर न कोई हू
इ’श्क़ सलामत रक्खीं 'बाहू' देयाँ ईमान धरोई हू
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ईमान सलामत हर कोई मंगे इ’श्क़ सलामत कोई हू
जिस मंज़ल नूँ इ’श्क़ पहुँचावे ईमान ख़बर न कोई हू
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मुर्शिद मक्का तालिब हाजी का’बा इ’श्क़ बड़ाया हू
विच हुज़ूर सदा हर वेले करिए हज सवाया हू
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आ’शिक़ इ’श्क़ माही दे कोलों फिरन हमेशा खीवे हू
जींदे जान माही नूँ डित्ती दोहीं जहानीं जीवे हू
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आ’शिक़ हो ते इ’श्क़ कमा दिल रक्खीं वांग पहाड़ाँ हू
सै सै बदियाँ लक्ख उलाहमें, जाणीं बाग़-बहाराँ हू
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इश्क़ दी गल्ल अवल्ली जेहड़ा शरआ’ थीं दूर हटावे हू
क़ाज़ी छोड़ कज़ाई जाण जद इश्क़ तमाँचा लावे हू
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ईमान सलामत हर कोई मंगे इश्क़ सलामत कोई हू
माँगण ईमान शरमावण इश्क़ोंं दिल नूँ ग़ैरत होई हू
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अंदर भाई अंदर बालण अंदर दे विच धूहाँ हू
शाह-रग थीं रब्ब नेड़े लद्धा इश्क़ कीताम जद सूहाँ हू
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इ’श्क़ असानूँ लिस्याँ जाता कर के आवे धाई हू
जित वल वेखां इ’श्क़ दिसीवे ख़ाली जा न काई हू
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जिन्हाँ इ’श्क़ हक़ीक़ी पाया मूँहों ना अलावत हू
ज़िकर फ़िकर विच रहण हमेशा दम नूँ क़ैद लागवन हू
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मंगण ईमान शरमावण इ’श्क़ोंं दिल नूँ ग़ैरत होई हू
इश्क़ सलामत रक्खीं 'बाहू' देयाँ ईमान धरोई हू
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गूढ़ ज़ुल्मात अंधेर ग़ुबाराँ राह ने ख़ौफ़ ख़तर दे हू
आब हयात मुनव्वर चश्मे साए ज़ुलफ़ अंबर दे हू
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aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere